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Saturday 3 November 2018

साए - (हिमांशु जोशी) भाग १


नन्हे-नन्हे दुधमुँहे बच्चे ! अकेली रुग्ण पत्नी ! नाते-रिश्ते का ऐसा कोई नहीं, जो जरुरत पर काम आ सके ! पति सुदूर अफ्रीका में, अस्पताल में बीमार ! महीनों तक कोई पत्र नहीं, हर रोज वे रंग-बिरंगे टिकटों वाले पत्र की राह देखते, परंतु डाकिया भूल से भी इधर झांकता न था ।
      हाँ, बहुत लंबे आरसे बाद एक पत्र एक दिन मिला । बड़ा अजीब सा था यह । बड़ा करुण । बड़ा दर्द भरा । नैरोबी के किसी अस्पताल से । लिखा था--रंगभेद के कारण पहले यूरोपियन लोगों के अस्पताल में जगह नहीं मिली, किंतु बाद में कुछ कहने-कहलाने पर स्थान तो मिला, किंतु अनावश्यक विलंब के कारण रोग काबू से बहार हो गया है । डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी है, किंतु उसमें भी अब सार लगता नहीं । चंद दिनों की मेहमानदारी है । उसके बाद तुम लोगों का क्या होगा, कुछ सूज़ता नहीं । पास होते तो...लेकिन भरोसा रखना...भगवान सबका रखवाला है, जिसने पैदा किया है, वह परवरिश भी करेगा ।
      पत्नी पत्र पढ़ती । रोती । अबोद बच्चे रुलाई भरी आँखों से माँ का मुँह ताकते ।
      फिर चिट्ठी पर चिट्ठियाँ डालीं उन्होंने, फिर तार, तब कहीं केन्या की मोहर लगा, एक विदेशी लिफाफा मिला। लिखा था, परमात्मा का ही यह चमत्कार है कि हालत सुधर रही है। एक नया जन्म मिला है।
      थोड़े दिनों बाद फिर पत्र आया, पहले की ही तरह किसी से बोलकर लिखवाया हुआ-हालत पहले से अच्छी है। चिंता की अब कोई बात नहीं।
      हमेशा की तरह कुछ रुपए भी पहुँच गए इस बार।
      बच्चों के मुरझाए मुखड़े खिल उठे। रुग्ण पत्नी का स्वास्थ्य तनिक सुधार की ओर बढ़ा। चिट्ठियाँ नियमित रूप से आती रहीं। रुपए भी पहुँचते रहे। उसने था, हाथ की ऑपरेशन की बाद अब वह पत्र नहीं लिख पाता, इसलिए किसीसे लिखवा लेता है। इधर एक नया टाइपराइटर खरीद लिया है उसने । अपने कारोबार का भी कुछ विस्तार कर रहा है धीरे-धीरे । कुछ नयी जमीन खरीदने का भी इरादा है शहर के पास। एक 'फार्म हाउस' की योजना है...घर के बारे में, पत्नी के बारे में , बच्चों की पढ़ाई के बारे में कितने ही प्रश्न थे। बड़ी उत्साह जनक बातें थीं विस्तार से । इतना अच्छा पत्र पहले कभी भी न आया था । सब को स्वाभाविक रूप से प्रसन्नता हुई ।
      डूबती नाव फिर पार लग गयी थीं - धीरे-धीरे।
      लगभग तीन बरस बीत गए। घर की ओर से पत्र पर पत्र जाते रहे, कि अब उसे थोड़ा सा समय निकालकर कभी घर भी आना चाहिए । बच्चे उसे बहुत याद करते हैं। उसे देखने भर को तरसते हैं। जो-जो हिदायतें चिट्टियों में लिखी रहती हैं, उनका अक्षरशः पालन करते हैं ! माँ को किसी किस्म का कष्ट नहीं देते। कहना मानते हैं। पढ़ने में बहुत मेहनत करते हैं । अज्जू कहता है कि बड़ा होकर वह भी पापा की तरह अफ्रीका जाएगा। इंजीनियर बनेगा। पापा के साथ खूब काम करेगा । अब वह पूरे बारह साल का हो गया है। छठी कक्षा में सबसे अव्वल आया है। मास्टरजी कहते हैं कि उसे वजीफा मिलेगा। उसी से अपनी आगे की पढाई जारी रख सकता है । तनु अब अठारह पार कर रही है। उसका भी ब्याह करना है। वहीं कोई अच्छा सा लड़का, अपनी जात-बिरादरी का मिले तो चल सकता है...चिट्ठी के जवाब में बहुत सी बातें थीं। लिखा था कि इस समय तो नहीं, हाँ, अगले साल तनु के ब्याह पर अवश्य पहुँचेगा। योग्य वर तो यहाँ भी मिल सकते हैं, पार विदेश में, अफ्रीका जैसे देश में, लड़की को ब्याहने के पक्ष में वह नहीं है। दहेज की चिंता न करना। वहीं वर की खोज करना।
      घर की तलाश में अधिक भटकने की आवश्यकता न हुई। आसानी से खाता-पीता घर मिल गया। शायद इतना अच्छा घराना न मिलता, लेकिन इस भरम से कि कन्या का बाप अफ्रीका में सोना बटोर रहा है, सब सहज हो गया। शादी की तिथि निश्चित हो गई। नैरोबी से पत्र आया कि वह समय पर पहुँच रहा है। गहने, कपडे सब बनाकर वह साथ लाएगा। लेकिन शादी के समय वह चाहकर भी पहुँच नहीं पाया। विवशताओं से भरा लंबा पत्र आया कि इस बीच जो एक नया कारोबार शुरू किया है, उसमें मजदूरों की हड़ताल चल रही है। ऐसे संकट के समय में, यह सब छोडकर वह कैसे आ सकता है ! हाँ, गहने, कपड़े और रुपए भिजवा दिए हैं। वर-वधु के चित्र उसे अवश्य भेजें, वह प्रतीक्षा करेगा।
      खैर, ब्याह हो गया धूम धाम के साथ । विवाह के सारे चित्र भी भेज दिए । अज्जू ने इस वर्ष कई इनाम जीते । हाईस्कूल की परीक्षा में जिले में सर्वप्रथम रहा । खेलों में भी पहला । बहुत से सर्टिफिकेट मिले, वजीफा मिला । इनाम में मिली सारी वस्तुओं के फोटो पापा को भेजना न भूले !
      बदले में कीमती कैमरा आया । गरम सूट का कपडा आया । सुंदर घडी आई । और मर्मस्पर्शी लंबा पत्र आया था कि वह बच्चों की उम्मीद पर ही जी रहा है । पत्नी का स्वास्थ्य अच्छा रहना चाहिए । बच्चे इसी तरह नाम रौशन करते रहें - उनके सहारे वह जिंदगी की डोर कुछ और लंबी खींच लेगा...यह सारा कारोबार सब उन्हीँके लिए तो है ! पर अनेक वादे करने पर भी घर आना संभव न हो पाता । हर बार कुछ-न-कुछ अड़चनें आ जातीं और उसका जाना स्थगित हो जाता ।